सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा है और पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को 4-1 से इसके पक्ष में फैसला दिया। हालांकि पीठ में शामिल जस्टिस जेबी पारदीवाला ने फैसले से असहमति जताई। पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला के अलावा मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल रहे।
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने की ये टिप्पणी
नागरिकता कानून की धारा 6ए को लेकर अपनी असहमति जताते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि 'अधिनियम की धारा 6ए भले ही इसे लागू करते समय वैध रही थी, लेकिन समय के साथ इसमें अस्थायी रूप से खामियां आ गई हैं। यह धारा राजनीतिक समझौते को विधायी मान्यता देने के लिए अधिनियमित की गई थी।' गौरतलब है कि नागरिकता कानून की नागरिकता कानून की धारा 6A को 1985 में असम समझौते के दौरान जोड़ा गया था। इस कानून के तहत जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से पहले असम आए, उन्हें भारतीय नागरिक माना गया है। वहीं 1 जनवरी 1966 से लेकर 25 मार्च 1971 के बीच असम आये अप्रवासियों को कुछ शर्तों के साथ भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिक नहीं हैं।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि 'इस धारा चुनावों से पहले असम के लोगों को खुश करने के लिए लाया हो सकता है। कानून के तहत 1971 से पहले भारत आने वाले सभी लोगों को भारत की नागरिकता दे दी गई थी, लेकिन तथ्य यह है कि 1966 से 1972 तक एक सख्त शर्त (10 साल तक कोई मतदान अधिकार नहीं) के अधीन एक वैधानिक श्रेणी बनाई गई थी, जिसका अर्थ है कि नागरिकता प्रदान करना एकमात्र उद्देश्य नहीं था और वास्तव में यह असम के लोगों को शांत करने के लिए था क्योंकि इस तरह के समावेश से राज्य में हुए चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ा।'
जस्टिस पारदीवाला ने कहा- समय बीतने के साथ धारा 6ए असंवैधानिक हो गई है
जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि 'यह अतार्किक रूप से हैरान करने वाला है कि 6A के तहत नागरिकता का लाभ उठाने के इच्छुक व्यक्ति को पकड़े जाने का इंतजार करना पड़ता है और फिर उसे साबित करने के लिए न्यायाधिकरण में जाना पड़ता है। मेरा मानना है कि यह इस तरह के कानून के उद्देश्य के खिलाफ है। इसमें कोई अस्थायी सीमा नहीं है, इसलिए कोई भी व्यक्ति इसके तहत विदेशी के रूप में पकड़ा जाना नहीं चाहेगा। धारा 6A समय बीतने के साथ असंवैधानिक हो गई है। इससे राज्य पर अवैध अप्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने का सारा बोझ भी इसमें जुड़ जाता है।'