Dinesh Singh Tarkar (Reporter)
आगरा – उत्तर मध्य रेलवे के आगरा मंडल में एक अज़ीबोग़रीब मामला सामने आया है जहां एक शक़्श ने दूसरी पार्टी का आर.ओ. वाटर प्लांट ही धोखाधड़ी और अधिकारियों की मिलीभगत से अपने नाम करा लिया। वहीं इस मामले में आगरा रेल मंडल के कुछ सीनियर ग्रेड के कर्मचारी और अधिकारियों के लिप्त होने की ख़बर मिल रही है। मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय आगरा की नाक के नीचे से इस प्लांट के प्रॉपर्टी और संचालन अधिकार दूसरी पार्टी को दे दिए गए।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खारे पानी की वज़ह से यहां के लोगों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है अब वो चाहे यहां के आम नागरिक हो या फ़िर सेवा कर रहे कर्मचारी। इस चीज़ से निपटने के लिए रेलवे अपनी ज़मीन प्राइवेट संचालकों को देकर वहां आर.ओ. वाटर प्लांट लगवाता है। इसमें आर.रो. की सभी मशीन खुद संचालक के पैसे की होती है और उसका ऱख-रखाव भी ख़ुद ऑपरेटर को ही देखना होता है। रेलवे आर.ओ. ऑपरेटर को कम पैसे में ज़मीन और बिजली मुहैय्या कराती है। बाक़ी जो कुछ भी खर्चा होता है वह सभी संचालक को स्वयं वहन करना होता है। संचालक को तय समय पर हर महीने रेलवे को किराया चुकाना होता है। इस से कई फायदे होते हैं जैसे पहला रेलवे के कर्मचारियों को कम पैसे में आर.रो वाटर मिल जाता है जिसकी प्राइवेट बाज़ार में कीमत दोगुनी से तीन गुना तक होती है। दूसरा रेलवे की बंज़र पड़ी जमीनों का बेहतर उपयोग और उस से राजस्व की प्राप्ति। तीसरा रोजगार सृजन – प्राइवेट लोगों को घर का ख़र्च उठाने में मदद।
लेकिन कुछ लोग आपदा में अवसर निकाल ही लेते है। देशभर में लगे लॉकडाउन और बढ़ते कोरोना संकट की वज़ह से आगरा रेलवे कॉलोनी के आर.ओ. संचालक विनोद कुमार ने अपना वाटर प्लांट अपने किसी जानने वाले को दे दिया था यह कहकर कि कोविड के बाद वो वापस आ जाएगा। लेकिन कुछ ही दिनों बाद राजेश पाल उर्फ़ राजू ने अपने साथी के साथ धोखाधड़ी कर दी और जालसाजी से विनोद का पंप अपने नाम करा लिया। राजू आज आगरा रेलवे कॉलोनी आर.ओ. प्लांट का मालिक बना बैठा है और विनोद दर-दर की ठोकरें खाकर अधिकारियों और बाबुओं के आगे पीछे चक्कर काट रहा है। मामला आगरा के डीआरएम आनंद स्वरूप तक पहुंच चुका है जिसको उनके ही द्वारा एडीआरएम एच.एस. राणा को ट्रांसफर कर दिया गया। फ़िलहाल मामले की जांच चल रही है और विनोद दिन पर दिन चिंता में डूबता जा रहा है। तो वहीं दूसरी तरफ राजेश बेख़ौफ़ और धड़ल्ले से प्लांट चला रहा है।
कोरोना क़हर थमने के बाद जब पंप मालिक विनोद आगरा अपना प्लांट देखने गया तो उसको पता चला की राजेश ने उसका प्लांट रेल अधिकारियों की मिलीभगत से अपने नाम करा लिया है। जब इसकी शिकायत उसने कार्यालय में की तो मामले को गंभीरता से न लेकर टालने की कोशिश की गयी। जांच और कागज़ी कार्रवाई का हवाला देते हुए विनोद को वहां से जाने को कहा। प्लांट खोलने के अनुबंध और उसमे लिखित क्रमांक 11 के अनुसार विनोद को तीन महीने पहले रेलवे द्वारा एक नोटिस मिलेगा कि रेलवे इस – इस कारण से अब इस अनुबंध को आगे नहीं बढ़ाएगी। लेकिन विनोद को रेलवे द्वारा कोई सूचना नहीं मिली।
दरअसल, रेलवे की सरकारी ज़मीन पर आर.ओ प्लांट खोलना इतना आसान भी नहीं होता है क्योंकि इसमें काफ़ी जटिल प्रक्रिया से होकर गुज़रना पड़ता है। रेलवे की अपनी महिला समाज कल्याण समिति होती है और सभी रेल समाज से जुड़े कल्याण कार्य यही समिति कराती है। आर.रो. वाटर प्लांट की स्थिति में भी कुछ ऐसा ही होता है। समिति की चेयरमैन आमतौर पर डीआरएम की पत्नी होती हैं और उद्घाटन कार्य भी उनके ही द्वारा संपन्न कराए जाते हैं। विनोद कुमार के मामले में भी कुछ ऐसा हुआ था। उद्धघाटन के वक़्त महिला समाज कल्याण की चेयरमैन वहां मौज़ूद थी और इसके फ़ोटोग्राफ़ भी विनोद के पास हैं जिसमे विनोद और उनकी पत्नी साफ़ तौर पर देखें जा सकते हैं। यही नहीं (2017) प्लांट खुलने से कोविड तक के सभी बिजली के बिल भी विनोद के ही नाम हैं। इतना ही नहीं रेल भूमि के मासिक किराए के बिल भी विनोद के पास आज भी मौजूद हैं। मामला मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय में लंबित है।