रुश्दी ने खुद पर हुए जानलेवा हमले की घटना को लेकर किया खुलासा, कहा- एक दिन पहले देखा था सपना

Date: 2024-04-16
news-banner
ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक सलमान रुश्दी ने अपनी नई किताब नाइक में कई खुलासे किए हैं। यह किताब उनके जीवन पर आधारित है। इसमें उस खौफनाक दिन का भी जिक्र किया गया है, जब उनके छुरा घोंपा गया था। इस घटना में उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी। वहीं इलाज के बारे में भी बताया गया है। 

नई किताब 'नाइफ' आज से स्टोर में उपलब्ध होगी। सलमान रुश्दी भारतीय मूल के अमेरिकी लेखक हैं, वह न्यूयॉर्क शहर में रहते हैं।

अगस्त में हुआ हमला
75 वर्षीय सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में साल 2022 की अगस्त में तब हमला किया गया था, तब वो एक प्रोग्राम में हिस्सा ले रहे थे। 24 साल के हादी मातर ने एक लाइव प्रोग्राम के दौरान रुश्दी के गले पर चाकू से कई बार हमला किया था। रुश्दी को एयर लिफ्ट करके एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। मातर एक शिया कट्टरपंथी ग्रुप से ताल्लुक रखता था। रुश्दी की गर्दन और पेट पर कई घाव थे। इस घटना में रुश्दी ने अपनी दाहिनी आंख खो दी। 

कई देशों में बैन है 'द सैटेनिक वर्सेज'
आपको बता दें कि सलमान रुश्दी ने 1988 में 'द सैटेनिक वर्सेज' नाम की एक किताब लिखी थी, जिसे मुस्लिम ईशनिंदा के रूप में देखते हैं। भारत सहित दुनिया के कई देशों में यह उपन्यास बैन है। इस किताब को लेकर ईरान के तत्कालीन सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी ने रुश्दी के खिलाफ एक फतवा जारी किया था। न सिर्फ सलमान रुश्दी बल्कि उनकी किताब ‘द सैटेनिक वर्सेस' के अनुवादकों पर भी हमले होते रहे हैं। द सैटेनिक वर्सेस उपन्यास जापानी ट्रांसलेटर हितोशी इगाराशी की हत्या कर दी गई। जबकि इटैलियन ट्रांसलेटर और नॉर्वे के पब्लिशर पर भी हमले हुए।

मैं भागा क्यों नहीं?
रुश्दी ने अपनी किताब में घटना के बारे में कहा, 'आखिर मैंने लड़ाई क्यों नहीं की? मैं भागा क्यों नहीं? मैं बस पिनाटा की तरह वहां खड़ा रहा और उसे मुझे मारने दिया। यह बिल्कुल भी नाटकीय या डरावना नहीं लगा। सच्चाई यह है कि सिर्फ संभावित लगा।

हत्यारे ने की थी दोषी नहीं होने की अपील
तेहरान ने रुश्दी पर हमला करने वाले शख्स के साथ किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया था। उसका कहना था कि इस घटना के लिए सिर्फ रुश्दी दोषी हैं। उस समय 24 साल के संदिग्ध हमलावर ने हत्या की कोशिश के लिए खुद के दोषी नहीं होने की अपील की थी। न्यूयॉर्क पोस्ट के साथ एक इंटरव्यू में कथित हमलावर, जिसके माता-पिता लेबनान से संयुक्त राज्य अमेरिका आए थे, ने कहा था कि उसने 'द सैटेनिक वर्सेज' के सिर्फ दो पेज पढ़े हैं, लेकिन उसका मानना है कि रुश्दी ने 'इस्लाम पर हमला किया था।'

रुश्दी तक हत्यारा कैसे पहुंचा इसे जानने के लिए उत्सुक
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करने वाले ग्रुप पेन (PEN) अमेरिका की मुख्य कार्यकारी सुजैन नोसेल ने कहा कि 'उस भयानक दिन के बाद से... हम इस कहानी का इंतजार कर रहे हैं कि आखिरकार सलमान रुश्दी तक हत्यारा कैसे पहुंचा।' उन्होंने कहा कि रुश्दी ने अब तक इस कहानी को अपने तक रखा, जिससे हमें उनके साहस पर आश्चर्य होता है। 

चाकू मारे जाने का देखा था सपना
किताब के बाजार में उपलब्ध होने से पहले एक इंटरव्यू में रुश्दी ने बताया कि उन्होंने हमले से दो दिन पहले एक एम्फीथिएटर में चाकू मारे जाने का सपना देखा था और इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने के बारे में भी सोचा था। फिर उनको लगा पागलपन करने की जरूरत नहीं है, यह सिर्फ एक सपना है।  

सलमान रुश्दी ने किताब में यह भी लिखा कि उन्हें इस कार्यक्रम के लिए अच्छे खासे रुपये मिलने वाले थे। इससे वह अपने घर की मरम्मत करवाना चाहते थे। इस कार्यक्रम में रुश्दी को उन लेखकों की सुरक्षा के बारे में बात करने के लिए आमंत्रित किया गया था, जिनकी जान को खतरा था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'यह जगह मेरे लिए सुरक्षित नहीं है।' रुश्दी ने किताब में अपने बुरे सपने का भी जिक्र किया है। 

पांच बार हो चुकी है शादी
रुश्दी का जन्म मुंबई में हुआ था। बहुत ही कम उम्र में वह इंग्लैंड चले गए थे। वह अपने दूसरे उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' (1981) से सुर्खियों में आए। इतना ही नहीं उन्हें स्वतंत्रता के बाद के भारत के चित्रण के लिए ब्रिटेन का प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार भी दिया गया था। लेकिन 'द सैटेनिक वर्सेज' से उनको काफी प्रसिद्धी मिली। रुश्दी एक नास्तिक लेखक हैं। उनकी किताब का अनुवाद करने वाले और उसके प्रकाशकों की हत्या की कोशिश के बाद रुश्दी को ब्रिटेन पुलिस की तरफ से सुरक्षा भी दी गई थी। साल 1990 के अंत में जब ईरान ने कहा कि वह उनकी हत्या का समर्थन नहीं करेगा, तब जाकर सलमान रुश्दी ने भगोड़े जीवन से राहत पाई। उनकी पांच बार शादी हो चुकी है और उनके दो बच्चे हैं। हमले के बाद उन्होंने पिछले साल एक उपन्यास 'विक्ट्री सिटी' भी जारी किया।

जब फिर गए घटनास्थल पर तो...
किताब में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि वह जिस जगह (चौटौक्वा इंस्टीट्यूशन) पर घटना हुई थी वहां एक बार फिर गए थे। उन्होंने कहा कि वहां दोबारा जाना सही था। उन्होंने कहा, 'जब हम शांति से वहां खड़े थे, मुझे एहसास हुआ कि एक बोझ किसी तरह मुझसे हट गया था। जो मैं महसूस कर रहा था उसके लिए मुझे जो सबसे अच्छा शब्द मिल सकता था वह हल्कापन था।'

Leave Your Comments