2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के भीतर मची अंतर्कलह के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के रास्ते अलग-अलग हो गए थे। इतना ही नहीं, दोनों के रिश्तो में इतनी कड़वाहट थी कि इनकी मुलाकात भी नहीं होती थी। अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी से अलग होने के बाद शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल की पार्टी ने कुछ खास हासिल नहीं किया। 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच मुलाकातों का दौर शुरू हुआ। दोनों ने गठबंधन भी किया।
सूत्र यह दावा कर रहे हैं कि अखिलेश यादव से शिवपाल ने 100 से ज्यादा सीटों की मांग की थी। हालांकि, अखिलेश यादव ने अब तक शिवपाल यादव को सिर्फ उनकी ही सीट पर एक टिकट दिया है। वह सीट है यशवंत नगर। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि 100 सीटों का दम भरने वाले शिवपाल आखिर एक सीट पर ही कैसे मान गए? यही कारण है कि वह अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए भी अबूझ पहेली बने हुए हैं। शिवपाल यादव खुलकर कुछ भी नहीं बोल पा रहे हैं। इतना ही नहीं, दवा यह भी किया जा रहा है कि शिवपाल यशवंत नगर से अपनी नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी के ही सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे। समाजवादी पार्टी की सूची में शिवपाल यादव का भी नाम आ चुका है।
शिवपाल यादव फिर से अपने भतीजे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने की बात कहते दिखाई दे रहे हैं। शिवपाल ने तो अखिलेश यादव को अपना नया नेता भी मान लिया है। शिवपाल यादव लगातार यह भी कह रहे हैं कि परिवारिक एकता के लिए वह किसी भी समर्पण को देने के लिए तैयार हैं। बताया जा रहा है कि यही कारण है जिसके चलते शिवपाल ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। बीच में अटकले इस तरह की भी थी कि शिवपाल कहीं भाजपा खेमे में तो नहीं जा रहे हैं। भाजपा और शिवपाल दोनों एक दूसरे की तारीफ भी करते दिखाई दे रहे थे। शिवपाल यादव की पार्टी ने पिछले 1 साल से विधानसभा चुनाव की तैयारियां भी शुरू कर दी थी। लेकिन अखिलेश से गठबंधन के बाद पार्टी का प्लान अब खत्म होता दिखाई दे रहा है।