सावनी शेंडे और हरीश तिवारी की ख़याल गायकी ने रसिकों को किया मंत्रमुग्ध
संस्कृति विभाग के संगीतमय आयोजन "राग अमीर" की दूसरी शाम सावनी शेंडे और पंडित हरीश तिवारी की ख्याल गायिकी की मधुर और सुरमयी प्रस्तुति के नाम रही। सावनी ने राग पूरिया कल्याण, बंदिश और अमरप्रिया तथा दिल्ली के जाने माने ख़याल गायक हरीश तिवारी ने राग दरबारी कान्हड़ा पर बंदिशे पेश कर कलारसिको को मंत्रमुग्ध कर दिया। दोनों ही गायकों ने अमीर ख़ाँ साहब के पसंदीदा राग़ों और उनके द्वारा गायी गई बन्दिशों को ही अपने गायन का हिस्सा बनाया। ख़याल गायिकी के उस्तादों में शुमार उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब की याद में उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी द्वारा रवींद्र नाट्य सभागृह इंदौर में 21 जनवरी से तीन दिवसीय "राग अमीर" संगीत समारोह किया जा रहा है। सावनी ने अपने गायन की शुरुआत राग पूरिया कल्याण से की। संक्षिप्त आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में तीन बन्दिशें पेश की। एक ताल में पंडित रामाश्रय झा द्वारा रचित विलंबित बंदिश के बोल थे - "आज की सांझ सजाओ", जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे- "मोरे घर आ जा।" उन्होंने द्रुत तीन ताल में तराना भी पेश किया। उन्होंने उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब के बनाए राग - "अमरप्रिया" को गाकर उस्ताद अमीर खाँ को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने अमरप्रिया राग में दो स्वरचित बन्दिशें भी पेश की। तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे- "पिया बिनु कल न परे" जबकि एकताल में द्रुत बंदिश के बोल थे- "आओ रे श्याम दरश दिखाओ।" उन्होंने अमरप्रिया की दोनों बन्दिशों को गाने में भी विविध लयकरियाँ पेश कर गायन की ऐसी खूबसूरत भावभूमि तैयार की कि उसमें उस्ताद अमीर खान का अक्श साकार हो उठा। सुश्री सावनी के साथ इंदौर के ही जाने माने तबला नवाज हितेन्द्र दीक्षित ने तबले और हारमोनियम पर विवेक बनसोड ने अपनी मिठास भरी संगत से रस घोल दिया। सावनी ने ग्वालियर घराने की विदुषी गायिका डॉ. वीणा सहस्त्रबुद्धे से ख़याल गायिकी की तालीम ली है।
उत्तर प्रदेश के किराना घराने से ताल्लुक रखने वाले हरीश तिवारी को भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी के सानिध्य में गायिकी की बारीकियाँ सीखने का सौभाग्य प्राप्त है। उन्होंने राग दरबारी कान्हड़ा से गायन की शुरुआत की। इस राग में आपने दो बन्दिशें पेश की। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल- "और नहीं कछु काम के" जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल - "किन बैरन कान भरे" थे। उन्होंने राग सुहा कान्हड़ा से गायन को आगे बढाते हुए द्रुत एकताल में बंदिश पेश की- "पियरवा मोरे आए" इस बंदिश को भी आपने बड़े सहज अंदाज़ में ओजपूर्ण ढंग से पेश किया। तिवारी के साथ तबले पर विनोद लेले और हारमोनियम पर विवेक बनसोड ने मणिकांचन संगत का प्रदर्शन किया।